Price: ₹400.00
(as of Sep 02, 2024 23:55:05 UTC – Details)
मेवाड़ का समग्र इतिहास (16वीं शताब्दी के विशेष संदर्भ में) : 16वीं शताब्दी भारतीय इतिहास में उथल-पुथल की शताब्दी थी, किन्तु मेवाड़ के लिए इस शताब्दी का प्रादुर्भाव अनेक सम्भावनाओं को लेकर हुआ था। यद्यपि 14वीं शताब्दी के प्रारम्भिक वर्षों में मेवाड़ की शक्ति को गहरा आघात लगा तथापि यह केवल अल्पकालीन था, कारण महाराणा कुम्भा के 35 वर्षीय शासनकाल (1435 ई.-1468 ई.) में मेवाड़ ने चंहुमुखी प्रगति कर ली। परिणामस्वरूप जब विदेशी मुगल बाबर ने पानीपत के प्रथम युद्ध (1526 ई.) में दिल्ली सुल्तान को करारी पराजय दी और भारत के अन्य क्षेत्रों पर अधिकार करने के प्रयास प्रारम्भ किये, यह सब देख उत्तर भारतीय शक्तियों में खलबली मचने लगी। मुगल साम्राज्य की स्थापना में उन्हें अपने राज्यों का अन्त दिखाई देने लगा। ऐसी स्थिति में सभी का प्रयास एक ऐसे नेतृत्व की तलाश में था जो बाबर को खदेड़ने में प्रभावशाली हो सके। तब स्वाभाविक रूप से सब को मेवाड़ के शासक महाराणा सांगा के नेतृत्व में अपना भविष्य दिखाई देने लगा। इसमें कोई संदेह नही की सांगा के नेतृत्व में अभूतपूर्व क्षमता थी। अतः वह सभी का केन्द्र बिन्दु बन गया। सभी शक्तियों ने उसके नेतृत्व में 1527ई. में खानवा का युद्ध लड़ा। संगठन को सफलता नहीं मिली। युद्ध में पराजय के परम्परागत कारणों का विवरण तो विद्धानों ने दिया है किन्तु प्रस्तुत ग्रन्थ में अन्य नवीन कारणों की ओर भी इतिहासवेत्ताओं का ध्यान आकर्षित करने का प्रयास किया है।
Publisher : RAJASTHANI GRANTHAGAR (1 January 2022); RAJASTHANI GRANTHAGAR, JODHPUR
Hardcover : 173 pages
ISBN-10 : 939144699X
ISBN-13 : 978-9391446994
Item Weight : 384 g
Country of Origin : India
Packer : RAJASTHANI GRANTHAGAR, JODHPUR