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(as of Aug 28, 2024 07:54:45 UTC – Details)
किसी भी भाषा की समपूष्ष्टता एवं सम्पूर्णता के लिए तीन घटक अतिआवश्यक माने जाते है। भाषा के साहित्य का इतिहास, उसकी व्याकरण तथा शब्द भंडार प्रमाणित करता भाष्षा का सबदकोस राजस्थानी भासा को पुनर्जीवन प्रदान करने वाले पातंजलि तथा पाणिनी के समकक्ष मान्यता प्राप्त पद्मश्री, मनीष्षी डा. सीताराम लालस ने अपने जीवन का एकमात्र ध्येय राजस्थानी भाष्षा को संजीवनी प्रदान करना ही बना लिया था। अतः अपनी साठ वष्र्षो की तपस्या से उद्यत राजस्थानी सबद कोस की रचना द्वारा उन्होने तीनों घटकों को प्रमाणित कर दिया। वृहद राजस्थानी सबद कोस में राजस्थानी भाष्षा के अथाह शब्द भंडार के अतिरिक्त-सबदकोस की प्रस्तावना में व्याकरण तथा साहित्य का इतिहास व भाष्षा की विवेचना द्वारा मूल-विशेष्षताओं तथा चरित्र को समझाते हुए वर्गीकृत भी किया है। पुस्तक में राजस्थानी भाष्षा के साहित्य की सम्पूर्ण प्रवृति एवं प्रकृति को समझा कर उसका विस्तृत परिचय प्रस्तुत किया गया है। राजस्थानी साहित्य की तीन प्रमुख प्रवृतियों को स्पष्ष्ट किया गया है यथा जैन साहित्य, चारण साहित्य तथा लोक साहित्य इन तीनों प्रवृतियों की प्रकृति को भी समझाया गया है। गद्य तथा पद्य रूप में उपलब्ध पोराणिक, मध्यकालीन एवं नवीन साहित्य के विभाजन उप विभाजन द्वारा साहित्य के प्रकार को स्पष्ष्ट प्रमाणित किया गया तथा उसका विवेचन किया गया है। राजस्थानी भाष्षा में प्रयुक्त विभिन्न विधाओं यथा गद्य में-बात, ख्यात, गाथा, दवावेत रासौ, लोककथाओं आदि तथा पद्य में गीत, डींगल गीत, दोहा, सोरठा, झमाल, छंद एवं लोकगीत आदि को पुस्तक में प्रचुर स्थान देकर उपयोगी बनाया गया है।
Publisher : R.G (1 January 2016)
ISBN-10 : 9385593358
ISBN-13 : 978-9385593352
Country of Origin : India